देवरिया। उत्तर प्रदेश सरकार जहाँ एक ओर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बनाने का दावा कर रही है, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
देवरिया जनपद में अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। आरोप है कि यहाँ चंद रुपयों के लालच में आम जनता की 'मौत का सौदा' बंद कमरों में तय किया जा रहा है।
नियमों को ताक पर रखकर सजी 'नुमाइश'
मामला गोरखपुर-देवरिया मार्ग पर स्थित 'आईकान शुगर मिल' के ग्राउंड में आयोजित 'ड्रीम सिटी मेला प्रदर्शनी' का है। विभागीय नियमों और सुरक्षा मानकों (By-laws) के अनुसार, किसी भी बड़ी प्रदर्शनी या मेले का आयोजन फ्लाईओवर या ओवरब्रिज से कम से कम 300 मीटर की दूरी पर होना चाहिए। लेकिन यहाँ नियम केवल कागजों तक सीमित हैं। यह मेला ओवरब्रिज से सटकर लगाया गया है, जो सीधे तौर पर हादसों को दावत दे रहा है।
अतीत के जख्मों से भी नहीं लिया सबक
साझा किए गए आधिकारिक दस्तावेज़ बताते हैं कि उप जिला मजिस्ट्रेट (सदर), देवरिया ने नवंबर 2023 में ही सुरक्षा कारणों और कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए इस मेले की अनुमति निरस्त कर दी थी। उस समय भी यह स्पष्ट किया गया था कि फ्लाईओवर पर राहगीर रुककर सेल्फी लेते हैं, जिससे जाम लगता है।
अगस्त 2023 में एक अनियंत्रित ट्रक रेलिंग तोड़कर नीचे गिर चुका है।
ऊंचाई से गिरने या भगदड़ मचने की प्रबल संभावना बनी रहती है।
तस्वीरों में दिखते पलटे हुए ट्रक और क्षतिग्रस्त कारें चीख-चीख कर गवाही दे रही हैं कि यह स्थान कितना संवेदनशील है। इसके बावजूद, इस साल फिर से उसी स्थान पर मेले की अनुमति मिलना 'मिलीभगत' की ओर साफ इशारा करती है।
कोहरे का कहर और प्रशासन का इंतज़ार
दिसंबर का महीना शुरू हो चुका है और उत्तर भारत में कोहरा अपने चरम पर है। ऐसे में हाईवे पर विजिबिलिटी (दृश्यता) कम हो जाती है। जब गाड़ियाँ फ्लाईओवर पर खड़ी होंगी या लोग मेले की चकाचौंध देखने के लिए अपनी रफ्तार धीमी करेंगे, तो पीछे से आने वाले वाहनों के टकराने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। क्या देवरिया प्रशासन किसी बड़ी जनहानि का इंतज़ार कर रहा है?
सत्ता की हनक या भ्रष्टाचार का खेल?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि बंद कमरों में 'मजबूत सौदेबाजी' के कारण अधिकारी मौन हैं। जब कोई बड़ी घटना घटती है, तो प्रशासन हाथ खड़े कर लेता है और नेता सिर्फ सांत्वना देने पहुँचते हैं। सवाल यह है कि जब नियम स्पष्ट हैं और पिछले हादसे गवाह हैं, तो फिर से वहीं परमिशन क्यों दी गई?
"यह प्रदर्शनी जनता के मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि रसूखदारों की जेब भरने और गरीबों की जान से खेलने के लिए लगाई गई प्रतीत होती है।"
प्रशासन से सीधे सवाल:
क्या 300 मीटर की दूरी का नियम केवल आम जनता के लिए है, मेला आयोजकों के लिए नहीं?
पिछली बार जिस खतरे को देखते हुए अनुमति रद्द की गई थी, क्या वह खतरा अब खत्म हो गया है?
कोहरे के इस मौसम में अगर फ्लाईओवर पर कोई बड़ा हादसा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
जागिए जिलाधिकारी महोदया! जनता की जान की कीमत चंद रुपयों से ऊपर है।
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