सीतापुर में दैनिक जागरण के पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी की निर्मम हत्या ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सरकार पत्रकारों की सुरक्षा करने में पूरी तरह विफल है।
राघवेंद्र लगातार धान खरीद में हो रही गड़बड़ियों को उजागर कर रहे थे। उनकी रिपोर्टिंग से घोटालेबाजों की पोल खुल रही थी, और जांच में भी अनियमितताएं पाई गई थीं। इसके अलावा, वे लगातार भ्रष्टाचार के अन्य मामलों पर भी लिख रहे थे, जिससे भ्रष्ट तंत्र बौखला गया था। अंततः उन्हें अपनी निडर पत्रकारिता की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी।
यह कोई पहली घटना नहीं है। सच्चाई को सामने लाने वाले पत्रकारों को हमेशा सत्ता, प्रशासन और भ्रष्ट तंत्र का कोपभाजन बनना पड़ता है। आए दिन उन पर झूठे मुकदमे लादे जाते हैं, उन्हें धमकाया जाता है, और कई बार तो उनकी हत्या तक कर दी जाती है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत है। एक पत्रकार का काम सरकार की चाटुकारिता करना नहीं, बल्कि जनहित में सच्चाई को सामने लाना होता है। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि जो पत्रकार सत्ता के भ्रष्टाचार को उजागर करता है, वह या तो निशाना बना दिया जाता है या फिर उसे झूठे मामलों में फंसा दिया जाता है।
सरकार की उदासीनता और आत्ममुग्धता
आज की सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। वह आत्ममुग्धता में इतनी डूबी हुई है कि उसे केवल अपना महिमामंडन ही नजर आता है। सरकार और प्रशासन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं, और जब कोई पत्रकार इनकी पोल खोलता है, तो उसे या तो फर्जी मुकदमों में फंसा दिया जाता है या फिर उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी जाती है।
सवाल यह उठता है कि क्या लोकतंत्र में सच लिखना गुनाह हो गया है? क्या पत्रकारिता अब सिर्फ सरकारी भोंपू बनने तक सीमित रह गई है? अगर कोई पत्रकार सरकार से सवाल करता है, तो उसे देशद्रोही करार दे दिया जाता है, और सत्ता के समर्थक भक्त मंडली पत्रकार पर ही टूट पड़ती है। ये लोग पत्रकारों से निष्पक्ष रिपोर्टिंग की उम्मीद करने के बजाय चाहते हैं कि वे सरकार की गलतियों पर पर्दा डालें। जबकि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य ही सत्ता को आईना दिखाना होता है, न कि उसकी जय-जयकार करना।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस नीति की जरूरत
पत्रकारों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को देखते हुए सरकार को एक ठोस नीति बनानी होगी, जिससे निडर और स्वतंत्र पत्रकारिता को संरक्षित किया जा सके। केवल प्रेस की स्वतंत्रता का दिखावा करने से कुछ नहीं होगा, जब तक पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती। अगर सरकार इसी तरह आंखें मूंदे रही, तो वह दिन दूर नहीं जब सच लिखने वाले हर पत्रकार को या तो झूठे मामलों में फंसा दिया जाएगा या उसकी हत्या कर दी जाएगी।
यह समय है कि पत्रकारों पर हो रहे हमलों को सिर्फ एक क्राइम न्यूज समझकर नजरअंदाज करने के बजाय इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला माना जाए। अगर आज पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं, तो कल आम जनता की आवाज भी दबा दी जाएगी। यह सिर्फ एक पत्रकार की हत्या नहीं, बल्कि सच को कुचलने की साजिश है, जिसे रोकना अब बेहद जरूरी हो गया है।

