विपक्ष : सत्तापक्ष के बिछाए चक्रव्यूह का अभिमन्यु!

 विपक्ष : सत्तापक्ष के बिछाए चक्रव्यूह का अभिमन्यु! 


व्यंग

सत्तापक्ष के रणनीतिकार राजनीति के महाभारत में शकुनी के योग्य शिष्य बन चुके हैं। उन्हें बखूबी पता है कि जनता को किन मुद्दों पर उलझाना है, किन बेतुके विवादों को हवा देनी है और कैसे विपक्ष को अपने ही बुने जाल में फंसाना है। विपक्ष भी अभिमन्यु की तरह हर बार इस चक्रव्यूह में घुस तो जाता है, मगर बाहर निकलने की अक्ल अब तक विकसित नहीं कर पाया है।


हर साल एक-आध प्रायोजित फिल्म, कोई भड़काऊ बयान, कोई पवित्र-अपवित्र का मसला उछाला जाता है और विपक्ष बिना कुछ सोचे-समझे वही करने लग जाता है जो सत्तापक्ष चाहता है—"बकसोदई पर बकसोदई!" जनता देख रही होती है, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से जल रही होती है, महंगाई की मार से कराह रही होती है, मगर विपक्ष अपनी ही गगरी में भंवर काट रहा होता है।


जब जनता "रोटी सेंकने" के लायक गैस सिलेंडर भी खरीद नहीं पा रही, तब विपक्ष सत्तापक्ष के बिछाए नकली मुद्दों की आग में "भाषण सेंक" रहा होता है। जब आम आदमी की जेब "फौरन-जेब" कटने से हल्की हो रही होती है, तब विपक्ष सोशल मीडिया पर उल-जुलूल बयान देकर अपनी बची-खुची साख भी गिरा रहा होता है। यह सिलसिला चलता रहता है, सत्ता अपनी चालें चलती रहती है और विपक्ष बस "खांट उखाड़ने" में जुटा रहता है।


अब तो स्थिति यह हो गई है कि सत्तापक्ष को कोई नई चाल चलने की जरूरत भी नहीं पड़ती, विपक्ष खुद ही "लवणेम भोज्यम" बैठ जाता है! अब आप ही बताइए, जब खुद विपक्ष ही अपनी थाली में सत्तापक्ष के परोसे मुद्दे चटखारे लेकर खा रहा हो, तो फिर सत्तापक्ष को क्या तकलीफ होगी? यही हाल रहा तो विपक्ष अगले चुनावों में भी अपनी ही "दशा की कथा" सुनाएगा, और सत्ता, एक बार फिर "ताली-थाली" बजवाकर, उसी मुद्दे से उसे बाहर कर देगी!

त्रिपुरेश्वर कुमार त्रिपाठी 

कार्यकारी संपादक अचूक रणनीति 

वाराणसी 

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