अहिल्याबाई होल्कर ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर सनातन को दी नई दिशा : प्रो. हरिकेश सिंह

पुण्यश्लोक लोकमाता रानी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के पावन अवसर पर संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित



 तथा महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ काशी विद्यापीठ एवं बिंदेश्वरी ग्रामोत्थान संस्थान अमेठी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के दूसरे दिन शुक्रवार को विद्वानों ने अहिल्याबाई होलकर के धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान पर गहन विमर्श किया।कार्यक्रम का आयोजन काशी विद्यापीठ के शिक्षाशास्त्र संकाय स्थित ज्योतिबा फूले सभागार में किया गया जहाँ राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए शिक्षाविदों शोधार्थियों सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विद्यार्थियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही संगोष्ठी की अध्यक्षता जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय छपरा (बिहार) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने की।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने कहा कि सनातन धर्म के संरक्षण पुनर्जीवन और सामाजिक चेतना के विस्तार में अहिल्याबाई होलकर का योगदान अतुलनीय और ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होलकर केवल एक शासिका नहीं थीं बल्कि वे सामाजिक सुधारक आध्यात्मिक पथप्रदर्शक और राष्ट्रनिर्माण की सशक्त प्रतीक थीं। उन्होंने सामाजिक बंधनों को तोड़कर यह सिखाया कि श्रेष्ठता और नेतृत्व सहज नहीं बल्कि कठिन परिस्थितियों से गुजरकर प्राप्त होते हैं।

प्रो. सिंह ने कहा कि माता अहिल्याबाई ने सती प्रथा जैसी अमानवीय और कुप्रथाओं को समाप्त कर महिलाओं को सम्मान सुरक्षा और नया जीवन प्रदान किया। उन्होंने स्त्री को केवल गृहस्थ जीवन तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसे सामाजिक धार्मिक और मानवीय गरिमा का अधिकार दिलाया। उन्होंने कहा कि आज जब महिला सशक्तिकरण की बात होती है तब अहिल्याबाई होलकर का जीवन हमारे लिए एक जीवंत उदाहरण है।


उन्होंने यह भी कहा कि अखंड भारत की सांस्कृतिक चेतना धार्मिक स्थलों का पुनर्निर्माण और मंदिरों को पुनः जीवंत स्वरूप प्रदान करने का श्रेय भी अहिल्याबाई होलकर को जाता है। काशी सोमनाथ द्वारका गया, उज्जैन सहित देश के अनेक पवित्र स्थलों पर उन्होंने मंदिरों और घाटों का पुनर्निर्माण कर सनातन परंपरा को संरक्षित किया। प्रो. सिंह ने कहा कि काशी विद्यापीठ स्वयं एक ऐसा संस्थान है जहाँ सत्याग्रही हो या संन्यासी सभी को समान स्थान और संरक्षण प्राप्त हुआ है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पूरे भारत में एकमात्र भारत माता मंदिर काशी विद्यापीठ में स्थित है जहाँ आने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक नई अनुभूति लेकर लौटता है।


विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के प्रोफेसर उमापति दीक्षित ने अपने वक्तव्य में कहा कि अहिल्याबाई होलकर महान शिवभक्त थीं और शिव तत्व ने उनके जीवन को दिशा संतुलन और शक्ति प्रदान की। उन्होंने कहा कि काशी के घाटों पर आज भी अहिल्याबाई होलकर के योगदान के शिलालेख और प्रमाण देखने को मिलते हैं जो उनकी दूरदर्शिता और धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि देशभर में मंदिरों के पुनर्निर्माण का जो व्यापक कार्य हुआ वह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है।


वरिष्ठ पत्रकार लेखक एवं पूर्व संपादक हरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि अहिल्याबाई होलकर केवल एक ऐतिहासिक नाम नहीं हैं बल्कि वे आत्मीय स्वतंत्रता, सेवा भावना और लोककल्याण की जीवंत प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि सदियों बाद भी अहिल्याबाई होलकर को श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया जाता है और उन्हें भुलाया नहीं जा सकता।


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अनुराधा सिंह ने अहिल्याबाई होलकर के जीवन और कार्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने सामाजिक सुधार महिला सशक्तिकरण, दूरदर्शी शिक्षा नीति और सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई का शासन लोककल्याण पर आधारित था जहाँ धर्म और नीति का संतुलन स्पष्ट दिखाई देता है।


प्रोफेसर श्रद्धा सिंह ने कविता के माध्यम से अहिल्याबाई होलकर के जीवन दर्शन को प्रस्तुत किया। उन्होंने शिवभक्ति पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में आत्मनिर्भरता तथा स्त्री उद्धार के संदर्भों को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।


संगोष्ठी के उपरांत काशी विद्यापीठ के नाट्य कला विभाग के विद्यार्थियों द्वारा हमारी अहिल्या काशी की अहिल्या शीर्षक नाटक की भावपूर्ण और प्रभावशाली प्रस्तुति की गई जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक के माध्यम से अहिल्याबाई होलकर के जीवन संघर्ष और सामाजिक योगदान को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया।


कार्यक्रम में स्वागत भाषण बिंदेश्वरी ग्रामोत्थान संस्थान के बिंदेश्वरी दुबे ने दिया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. अमित कुमार सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक डॉ. नागेंद्र कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर अनेक शिक्षाविद, शोधार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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