जानें काशी को, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ का हर कंकड़ शंकर है।
जहाँ सुबह की शुरुआत वेदमंत्रों से होती है और रात गंगा की आरती के दीपकों से जगमगाती है। जहाँ बाबा विश्वनाथ राजा हैं और काल भैरव कोतवाल। यह वह नगर है जो आपको जीवन जीना भी सिखाता है और मृत्यु का उत्सव मनाना भी..."
महाश्मशान का मंगल: जहाँ मृत्यु भय नहीं, वरदान है
दुनिया के किसी भी कोने में श्मशान उदासी का प्रतीक होता है, लेकिन काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर दर्शन बदल जाता है। यहाँ जलती चिताओं के बीच जीवन की नश्वरता का बोध होता है। मान्यता है कि यहाँ महादेव स्वयं जीव के कान में तारक मंत्र फूँकते हैं। यहाँ की राख (भस्म) ही बाबा का श्रृंगार है, जो यह संदेश देती है कि अंत ही अनंत की शुरुआत है।
बाबा विश्वनाथ मंदिर (काशी विश्वनाथ) मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और काशी का हृदय माना जाता है।
महत्व: ऐसी मान्यता है कि प्रलय आने पर भी भगवान शिव इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।
इतिहास: वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखरों पर सोने की परत चढ़वाई, जिससे इसे 'गोल्डन टेम्पल' भी कहा जाता है।
विशेषता: अब 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' बनने के बाद गंगा घाट से सीधे मंदिर तक पहुंचना सुलभ हो गया है।
माँ विशालाक्षी मंदिर (शक्तिपीठ)
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ही मीर घाट पर स्थित यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ देवी सती के कान के कुंडल (मणि) गिरे थे। इन्हें 'विश्वनाथ की शक्ति' माना जाता है।
दर्शन: यहाँ दक्षिण भारतीय शैली की वास्तुकला देखने को मिलती है। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी करवट (मर्णिकर्णिका घाट के पास)
'काशी करवट' एक बहुत ही रहस्यमयी और प्राचीन मंदिर है, जो रत्नेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
विशेषता: यह मंदिर मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है और एक तरफ झुका हुआ है। इसे 'वाराणसी का लीनिंग टावर' भी कहते हैं।
पौराणिक कथा: इसके झुके होने के पीछे कई लोककथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, इसे एक पुत्र ने अपनी माँ के ऋण से मुक्त होने के लिए बनवाया था, लेकिन मंदिर झुक गया क्योंकि माँ का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता।
विष्णु मंदिर और हनुमान मंदिर
काशी में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु और हनुमान जी का भी गहरा नाता है
बिंदु माधव (विष्णु मंदिर): पंचगंगा घाट पर स्थित यह काशी का सबसे प्राचीन विष्णु मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या की थी।
संकट मोचन हनुमान मंदिर: अस्सी घाट के पास स्थित यह मंदिर बेहद जागृत माना जाता है। इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी।
हनुमान मंदिर (विष्णु जी के सानिध्य में): काशी के कई घाटों पर विष्णु जी और हनुमान जी के विग्रह एक साथ मिलते हैं, जो 'हरि' (विष्णु) और 'हर' (शिव) के एकाकार होने का प्रतीक हैं।
काशी: एक शाश्वत यात्रा की शुरुआत (भाग-1)
"काशी कबहुँ न छोड़िये, विश्वनाथ का वास..."
कहते हैं काशी दुनिया का सबसे पुराना जीवित शहर है, लेकिन सच तो यह है कि काशी सिर्फ एक शहर नहीं, एक अहसास है। यहाँ की गलियों में वक्त ठहर सा जाता है और गंगा की लहरों में मुक्ति का संगीत सुनाई देता है।
काशी को एक बार में देख लेना, समझ लेना या लिख देना संभव ही नहीं है। यह महादेव के त्रिशूल पर टिकी वो नगरी है जहाँ जीवन और मृत्यु एक साथ उत्सव मनाते हैं। चाहे वो घाटों की सुबह-ए-बनारस हो या शाम की भव्य गंगा आरती, यहाँ का हर कोना एक नई कहानी कहता है।
आने वाले अंकों में हम क्या तलाशेंगे?
यह हमारी काशी सीरीज की बस एक शुरुआत है। आने वाले भागों में हम गहराई से जानेंगे:
काशी की परंपरा: यहाँ के घाट, अखाड़े और सदियों पुराने रीति-रिवाज।
भजन और संगीत: बनारस घराने की शास्त्रीय विरासत और गलियों में गूँजते शिव के भजन।
स्वाद और जायका: कचौड़ी-सब्जी से लेकर विश्वप्रसिद्ध बनारसी पान और मलाईयो का जादू।
महल और स्थापत्य: गंगा किनारे खड़े वो भव्य महल जो इतिहास की गवाही देते हैं।
तो तैयार हो जाइए, मेरे साथ इस रूहानी सफर पर चलने के लिए। काशी का असली रंग अभी दिखना बाकी है!
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