"आइये जानें काशी को: जहाँ गंगा की लहरों में अध्यात्म और चिताओं की भस्म में मोक्ष बसता है"

जानें  काशी को, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ का हर कंकड़ शंकर है।

जहाँ सुबह की शुरुआत वेदमंत्रों से होती है और रात गंगा की आरती के दीपकों से जगमगाती है। जहाँ बाबा विश्वनाथ राजा हैं और काल भैरव कोतवाल। यह वह नगर है जो आपको जीवन जीना भी सिखाता है और मृत्यु का उत्सव मनाना भी..."

          संस्कृत शब्द 'काश' (प्रकाश) से उत्पत्ति
सबसे मान्य और प्रसिद्ध कारण यह है कि 'काशी' शब्द संस्कृत की 'काश' (Kāś) धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है— 'चमकना', 'प्रकाशित होना' या 'उजाला'।इसे 'प्रकाश की नगरी' (City of Light) माना जाता है क्योंकि यह ज्ञान और आध्यात्म के प्रकाश का केंद्र है। मान्यता है कि यहाँ भगवान शिव का आत्म-ज्ञान हमेशा प्रकाशित रहता है, जो अज्ञान के अंधेरे को दूर करता है।

 राजा 'काश' के नाम पर (ऐतिहासिक मत)
इतिहास और पुराणों (जैसे हरिवंशपुराण) के अनुसार, प्राचीन काल में राजा काश (King Kasha) नामक एक प्रतापी राजा थे।वे चंद्रवंश के राजा पुरुरवा के वंशज थे।उन्हीं के वंशज 'काशि' कहलाए और उनके द्वारा बसाए गए या शासित क्षेत्र (जनपद) का नाम 'काशी' पड़ गया।
            'काश' नामक घास (प्राकृतिक कारण)
एक मत यह भी है कि प्राचीन समय में गंगा के किनारे 'काश' (Kasha) नामक एक विशेष प्रकार की लंबी, चाँदी जैसी चमकने वाली जंगली घास (Wild grass) बहुत अधिक उगती थी। इसी घास की बहुतायत के कारण इस क्षेत्र को काशी कहा जाने लगा।
           पौराणिक कथा (विष्णु और परम ज्योति)
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस स्थान को 'अविमुक्त क्षेत्र' कहा था। यहाँ की 'परम ज्योति' (Supreme Light) या तेज के कारण उन्होंने इसका नामकरण 'काशी' किया।
'काशी' से 'बनारस' और फिर 'वाराणसी
काशी (प्राचीनतम आध्यात्मिक नाम)
'काशी' इस शहर का सबसे प्राचीन नाम है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद और अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।
अर्थ: 'काश' धातु से बने इस शब्द का अर्थ है—"प्रकाशमान होना" या "चमकना"।
इसे 'प्रकाश की नगरी' कहा गया क्योंकि माना जाता था कि यहाँ आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश मिलता है। आज भी धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में 'काशी' नाम सबसे ज्यादा सम्मानजनक माना जाता है।
वाराणसी (भौगोलिक और पौराणिक आधार)
यह नाम शहर की भौगोलिक स्थिति को दर्शाता है।
संधि विच्छेद: यह नाम दो नदियों के मेल से बना है— वरुणा और असि।
कारण: यह शहर उत्तर में 'वरुणा' नदी और दक्षिण में 'असि' नदी के बीच बसा हुआ है। मत्स्य पुराण और अन्य ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन दो नदियों के बीच के क्षेत्र को 'वाराणसी' कहा जाएगा



बनारस (अपभ्रंश और लोक-प्रचलित नाम)
'बनारस' कोई नया नाम नहीं था, बल्कि 'वाराणसी' का ही बदला हुआ रूप (अपभ्रंश) था।
कैसे बना: समय के साथ आम बोलचाल में 'वाराणसी' शब्द घिसकर 'बनारसी' और फिर 'बनारस' हो गया।
मध्यकाल और ब्रिटिश काल: मुगल काल और विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान 'बनारस' नाम ही आधिकारिक और वैश्विक रूप से सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ। यहाँ की संस्कृति, खान-पान और संगीत 'बनारसी' के नाम से ही दुनिया भर में मशहूर हुए।
फिर से 'वाराणसी' क्यों?
आजादी के बाद, देश में कई शहरों के नामों को उनके प्राचीन और वास्तविक गौरव से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई।
आधिकारिक बदलाव: 1956 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर फिर से 'वाराणसी' कर दिया।

उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य शहर को उसकी पौराणिक पहचान वापस देना और स्थानीय नदियों (वरुणा और असि) के साथ उसके ऐतिहासिक संबंध को स्थापित करना था।

महाश्मशान का मंगल: जहाँ मृत्यु भय नहीं, वरदान है

दुनिया के किसी भी कोने में श्मशान उदासी का प्रतीक होता है, लेकिन काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर दर्शन बदल जाता है। यहाँ जलती चिताओं के बीच जीवन की नश्वरता का बोध होता है। मान्यता है कि यहाँ महादेव स्वयं जीव के कान में तारक मंत्र फूँकते हैं। यहाँ की राख (भस्म) ही बाबा का श्रृंगार है, जो यह संदेश देती है कि अंत ही अनंत की शुरुआत है।

बाबा विश्वनाथ मंदिर (काशी विश्वनाथ) मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और काशी का हृदय माना जाता है।

महत्व: ऐसी मान्यता है कि प्रलय आने पर भी भगवान शिव इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।

इतिहास: वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखरों पर सोने की परत चढ़वाई, जिससे इसे 'गोल्डन टेम्पल' भी कहा जाता है।

विशेषता: अब 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' बनने के बाद गंगा घाट से सीधे मंदिर तक पहुंचना सुलभ हो गया है।

माँ विशालाक्षी मंदिर (शक्तिपीठ)

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ही मीर घाट पर स्थित यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है।

महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ देवी सती के कान के कुंडल (मणि) गिरे थे। इन्हें 'विश्वनाथ की शक्ति' माना जाता है।

दर्शन: यहाँ दक्षिण भारतीय शैली की वास्तुकला देखने को मिलती है। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

काशी करवट (मर्णिकर्णिका घाट के पास)

'काशी करवट' एक बहुत ही रहस्यमयी और प्राचीन मंदिर है, जो रत्नेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

विशेषता: यह मंदिर मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है और एक तरफ झुका हुआ है। इसे 'वाराणसी का लीनिंग टावर' भी कहते हैं।

पौराणिक कथा: इसके झुके होने के पीछे कई लोककथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, इसे एक पुत्र ने अपनी माँ के ऋण से मुक्त होने के लिए बनवाया था, लेकिन मंदिर झुक गया क्योंकि माँ का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता।

विष्णु मंदिर और हनुमान मंदिर

काशी में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु और हनुमान जी का भी गहरा नाता है

बिंदु माधव (विष्णु मंदिर): पंचगंगा घाट पर स्थित यह काशी का सबसे प्राचीन विष्णु मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या की थी।

संकट मोचन हनुमान मंदिर: अस्सी घाट के पास स्थित यह मंदिर बेहद जागृत माना जाता है। इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी।

हनुमान मंदिर (विष्णु जी के सानिध्य में): काशी के कई घाटों पर विष्णु जी और हनुमान जी के विग्रह एक साथ मिलते हैं, जो 'हरि' (विष्णु) और 'हर' (शिव) के एकाकार होने का प्रतीक हैं।

काशी: एक शाश्वत यात्रा की शुरुआत (भाग-1)

"काशी कबहुँ न छोड़िये, विश्वनाथ का वास..."

कहते हैं काशी दुनिया का सबसे पुराना जीवित शहर है, लेकिन सच तो यह है कि काशी सिर्फ एक शहर नहीं, एक अहसास है। यहाँ की गलियों में वक्त ठहर सा जाता है और गंगा की लहरों में मुक्ति का संगीत सुनाई देता है।

काशी को एक बार में देख लेना, समझ लेना या लिख देना संभव ही नहीं है। यह महादेव के त्रिशूल पर टिकी वो नगरी है जहाँ जीवन और मृत्यु एक साथ उत्सव मनाते हैं। चाहे वो घाटों की सुबह-ए-बनारस हो या शाम की भव्य गंगा आरती, यहाँ का हर कोना एक नई कहानी कहता है।

आने वाले अंकों में हम क्या तलाशेंगे?

यह हमारी काशी सीरीज की बस एक शुरुआत है। आने वाले भागों में हम गहराई से जानेंगे:

काशी की परंपरा: यहाँ के घाट, अखाड़े और सदियों पुराने रीति-रिवाज।

भजन और संगीत: बनारस घराने की शास्त्रीय विरासत और गलियों में गूँजते शिव के भजन।

स्वाद और जायका: कचौड़ी-सब्जी से लेकर विश्वप्रसिद्ध बनारसी पान और मलाईयो का जादू।

महल और स्थापत्य: गंगा किनारे खड़े वो भव्य महल जो इतिहास की गवाही देते हैं।

तो तैयार हो जाइए, मेरे साथ इस रूहानी सफर पर चलने के लिए। काशी का असली रंग अभी दिखना बाकी है!

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